Monday, April 30, 2018

शासक लोग गुलामों से पहले खून लिया करते थे, आज श्रम और पसिना ले रहे हैं.


हम मधेशी इतने भावूक हैं कि कोई सरकारी अथवा गैर-सरकारी संस्था २-४ गरीवों का घर बना दे तो उनकी गाथा गाते वर्षों नहीं थकते । किसी संस्था के पदाधिकारी एक अभियान के तहत कभी दलितों के घर खाना खाने चले जाय तो भेदभाव मिटने को ठान लेते हैं । डलर की फसल काटने वाले कभी कभार मधू लाकर हमें दे दें तो सारे गम, पीड़ा, उत्पीड़न खत्म होने को मान लेते हैं ।
अरे दोस्त, सैकड़ों मधेशी मजदूर विदेश में काम करते करते दम तोड़ देते हैं, और उनकी लाश आनेसे पहले खबर तक मालूम नहीं होती। अपराध के जूर्म में न्यायालय द्वारा फाँसी की सजा सुनाए गए किसी एक मधेशी का जो उद्धार करते हैं उन्हें हम भगवान मान बैठते हैं । सैकड़ों मधेशी आज भी विदेशों के जेल में बन्द हैं, नेपाली सरकार मौन हैं । हजारों की जीवन जोखिम में है, सरकार लाचार है । मधेशी जनता भावूक ही ईतने हैं कि खुद्रा में काम करनेवालों को भी यश पुरे डलर का कर देते हैं । मधेशियों में रहे ईन्हीं भावूकता की लाभ अवसरवादियों ने सदैव उठाया है और सांसद, मन्त्रियों के पद तक जाने में सफल होता आया है ।
कान्तिपुर पोस्ट लिखते हैं : नेपाली साम्राज्य से विदेशों में जाकर मजदूरी करनेवालों में सबसे आगे मधेशी रहे हैं । मुल्क के भितर मधेशी जनता गुलामी जीवन जीने को बाध्य रहे हैं और बाहर विदेशों में अपना पसिना बहा रहे हैं एवं जीवन गवांने पर मजबूर होते रहे हैं ।
रिपोर्ट में आगे लिखा गया है : नेपाली साम्राज्य से विदेशों में मजदूर भेजने वाले टॉप १० जिलों में से सारे के सारे मधेश के जिला रहे हैं । कान्तिपुर के डेटा देखें : १. धनुषा - ५.१६%, २. झापा - ४.४८%, ३. महोत्तरी - ४.४०%, मोरंग - ४.१०%, सिरहा - ३.९७% । पोष्ट अनुसार सरकारी तथ्यांक कहती है, मधेशी लोगों की बहूलता रहे प्रदेशों में से प्रदेश नं. १(२५.५१%), प्रदेश नं. २(२४.१०%) और प्रदेश नं. ५(१६.२६%) मजदूर भेजने में क्रमशः सबसे आगे रहे हैं ।
आश्चर्य की बात तो यह है कि मजदूर भेजने में शीर्षस्थ मधेश के १० जिलों से ३४.६४% मजदूर विदेश में अपना खून पसीना बहा रहे हैं । वहीं पर बाँकी रहे ६७ जिलों से केवल ६५.३६% मजदूर विदेश में कार्यरत रहे हैं ।
सभी जान रहे हैं और देख भी रहे हैं, नेपाली साम्राज्य के भीतर मधेशी बहुत पिछे रहे हैं । राजनीति, अर्थ, रोजगारी, बेपार, शिक्षा, सत्ता, सेना हर क्षेत्र में नेपालियों से बहुत पिछे हैं । किन्तु विदेश जाने और पसिने बहाकर नेपाली साम्राज्य को लगान भरने में सबसे आगे रहे हैं ।
सन् १९४७ से पहले भारत में भी यही हुआ करता था । खून और लगान भारतीय लोग देते थे परंतु उसपर ऐशोआराम अँग्रेजी हुकूमत के लोग फरमाते थे । ठिक उसी प्रकार वही जूल्म और दूर्व्यवहार आज यहाँ नेपाली राज में फिरंगियों के द्वारा हम मधेशियों पर किया जा रहा हैं । खेतों में काम करके उन्हें अनाज हम मधेशी देते हैं, दाम वो लगाते हैं। वोर्डर पर गस्ती मधेशी लोग लगाते हैं, भन्सार राजस्व उठाकर वो लोग ले जातें हैं । जल, जंगल, जमीन पर पसिने हम लगाते हैं लेकिन उसका उपज नेपाली सेना, पुलिस और कर्मचारी खाते हैं । लगान और मजदूरी हम देतें हैं किन्तु मुल्क पर हुकूमत फिरंगी लोग चलाते हैं । वर्षों से होता यही रहा है ।
कहते हैं, जब जागा तभी सबेरा । हमें अब जागना ही होगा । भावना, भावूकता और भ्रम से बाहर निकलना ही होगा । २ सौ वर्षों से हमपर हो रहे औपनिवेशिक शासन को अब खत्म करना होगा एवं गुलामी, रंगभेद और नेपाली शासन को बिराम देना ही होगा । ईक्का दुक्का भावूक कार्यों से मधेशी जनता को दिगभ्रमित करने और उसके सहारे नेता, मन्त्री का कुर्सी प्राप्त करने की नाटक अब हर जगह, हर क्षेत्र में बन्द हो । हम सांसद, मन्त्री जरूर बनेंगे किन्तु उससे पहले मधेश माता को बिमारियों से मुक्त करना होगा... और,
हमारे पास रहे सारे बिमारियों को एक ही दवा है :
Shyam Sundar Mandal ko fb bat

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